मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ ?मैं कौन हूँ और कहाँ से आया हूँ ?(प्रवचन अभिलाष साहब ,कबीर आश्रम ,प्रयाग ,Part II)
वासना का त्याग करना जीवन का फल है
कर्मों से तो यह जीवन बना है। जैसे जिनके कर्म होते हैं वैसे उनको फल होतें हैं। कर्म सुधार जीवन का सुधार है। जो इच्छा पूर्वक मन और इन्द्रियों से किया जाय वह कर्म है। वह दो प्रकार है एक पाप एक पुण्य। पाप पुण्य क्या है ?
देवता और भगवान् के नाम पर जीव की हत्या भी लोग पुण्य मानते हैं। देवता और परमात्मा किसी की जान लेने पर कैसे खुश होगा ?मांसाहारियों की जीभ लपलपाती है और वे धर्म के नाम पर काट के खाना चाहते हैं धार्मिक भी बना रहना चाहते हैं और मांस भी खाना चाहते हैं। इसलिए उनकी भी एक ठकुराई है। जीव हत्या कभी धर्म नहीं होता है। पाप और पुण्य की परिभाषा सरल है। किसी को पीड़ा देना और अपनी मन इन्द्रियों को चंचल करना पाप है। दूसरों को सुख पहुंचाना ,अपनी इन्द्रियों पर संयम करना पुण्य है। ये पाप पुण्य कर्म करने के लिए प्रेरणा कौन देता है ?
लोग कहते हैं ईश्वर देता है। ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ते भी नहीं हिलते हैं। ये भक्ति भावना की बात है बड़ी अच्छी लगती है। दुनिया में जितने अच्छे कर्म होते हैं वह तो समझ में आता है कि ईश्वर ने करवाया। और जो बुरे कर्म होते हैं वह कौन करवाता है ?वो भी वही करवाता होगा ?ये बात समझ में नहीं आती है। जो कुछ करते हैं हम करते हैं। हम जिम्मेदार हैं। कोई भगवान् या शैतान हमसे नहीं करवाता है। हम सुधार सकते हैं अपने को। अगर हम कठपुतली हैं जैसा कि लोग कहते हैं वही करता करवाता है तो इस सिद्धांत में तो हम कर्म से छुट्टी पा गए। कठपुतली तो जैसे सूत्रधार नचाता है वैसे नाचती है। तब क्या शास्त्र कठपुतली के लिए बने हैं क्योंकि आप तो बिगड़े भी नहीं है सुधरे भी नहीं है। जैसे हैं वैसे हैं। ये सब धारणाएं बिलकुल झूठी हैं। इन धारणाओं ने कर्म सिद्धांत को चौपट कर दिया है। तथ्य यह है कि हर जीव कर्म करने के लिए स्वतन्त्र है।
मन से सोचना वाणी से बोलना और फिर कर्म करना,जैसे चाहे , जो चाहे करना तीनों में आप स्वतन्त्र हैं।
आप संभाले अपने मन , वाणी और कर्म को नहीं तो दुःख पायेंगे।भगवान् कमीशन खोर नहीं है जो चोरी बे -ईमानी की बंदर बाँट लेकर खुश हो जाए ,लड्डू खाकर आपके किये की अनदेखी कर दे। चोरी आदमी के घर में करो और भगवान् के घर में क्षमा मांगो। ये क्षमा मांगने का कोई नया तरीका है ?जिसके घर में चोरी की है क्षमा उससे मांगो और उसका माल लौटा दो ये क्षमा मांगना है। भगवान् को चढ़ावा चढ़ाना वो भी चोरी के ही माल से, क्षमा मांगना नहीं है ।
कोई भगवान् आपको क्षमा करने वाला नहीं है अगर भगवान भी गलत काम करेगा तो उसका दंड उसे भोगना पड़ेगा।
राम ने स्वर्ण मृग का लोभ किया सीता हरी गईं ,सीता रोईं रावण के घर में(अशोक वाटिका ) और राम रोये जंगल में। रामावतार में राम ने बाली को छिपके मारा तो कृष्ण अवतार में ज़रा नाम के शिकारी से मारे गए।
अपनो कर्म न मेटो जाई (कबीर )
कर्म सुधारने पर ध्यान दो सच्चा ईश्वर है नियम। नियम सर्वत्र व्याप्त है नियम के अनुसार चलो। जो हम करते हैं वह हम भरते हैं हमारा पूरा जीवन कर्मों से खड़ा है . कर्म का सुधार ही जीवन का फल है। वाणी से किसी को तकलीफ न दो। मन से किसी का गलत न सोचो इन्द्रियों से गलत काम किसी के लिए न करो। इसके लिए बल मिलेगा संतों की संगत सद्शास्त्रों का अध्ययन मनन चिंतन करने से । अकेले में बैठकर विचार करना ध्यान करना। सोचना अपने को परिमार्जित करना इस रास्ते से सुधरेगा मन ।
हम इस संसार में भटक रहे हैं।कहीं से आये गए की बात छोड़ो ,वासनाओं से भटक रहे हैं हम। वर्तमान के अनुभव से हमें अपने को कसने की ज़रूरत है।हम जितनी इच्छाएं करते हैं दुनिया की उतनी तकलीफ मिलती है। इच्छाएं छोड़ देते हैं तकलीफ मिट जाती है।अपनी स्थिति में रहते मेहनत करो और उतने में जो उपलब्ध हो उसमें संतुष्ट रहो। तुलना न करो दूसरे को देखकर उससे अपनी । इसमें जलने के सिवाय और कुछ नहीं। हमारा जो है बहुत है हमारी झौंपड़ी हमारा आशियाना है राजमहल है। हमारी साइकिल हमारे लिए हेलीकॉप्टर है। प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट रहें।ये जितना बाज़ार है यह झूठ है यह समझें। ये बाज़ार उठ जाने वाला है। ऐसे परिवर्तनशील संसार में हम जी रहे हैं यहां पर क्या स्थिर है ?क्या अपना है सब शून्य में बदलने वाला है। मूल वस्तु शून्य नहीं होती है। कार्य -पदार्थ टूट जाता है बिखर जाता है।
संसार में भटकाव से इच्छाओं की आपूर्ति से खुद को बचाएं। बस अपना काम करें कर्तव्य निभाएं मोह न करें। हमारा लड़का क्यों नहीं मानता है हमारा कहा। निष्काम भाव से जीना साधुओं के पास है। साध जिसका मन हो वह साधू है। सुखी रहेगा वह । निष्काम मन सुखी रहेगा।
जानवरों में कोई संग्रह नहीं। मनुष्य की बुद्धि संग्रह में ,भोग में शिकारों में इतनी उलझ गई है कि हर दम दुखी रहता है।सुख से जीना हमारे अधिकार में है। अहंकार छोड़ दें पूरा सुख से जी सकते हैं। कामना छोड़ दें ,भोग की लालसा छोड़ दें। दूसरे का छिद्रान्वेषण करने के चक्कर में न पड़ें खुद का कर लें। सर झुकाकर अपने कल्याण के पथ पे चलें। फिर कोई दुःख नहीं है। ये जीवन का फल है।
आपस में संवाद जहां नहीं है वहां शांति कैसे रहेगी ?भगवान् का दुर-उपयोग बहुत हो रहा है।भगवान् के भजन का मतलब है आत्म शुध्दि करना ,हो इसके विपरीत रहा है। भ्रष्टाचार और विकृति बढ़ाने में किया जा रहा है उस ईश्वर का इस्तेमाल जो दिखलाई नहीं देता है और लोग कहते उसे प्यार करता हूँ। वही लोग कहते हैं पड़ोसी को देखकर मेरा एक पाव खून जल जाता है। जो दिखलाई देता है उस से घृणा ,यह कैसा है परमेश्वर से प्रेम ?
मन को संसार से निकालो मोह को छोड़ो तो मोक्ष मिले।कौन कहाँ से आया व्यर्थ के इस विवाद में पड़ताल में मत पड़ो। कोई कहीं से नहीं आया है। तुम्हारी वासनाएं ही तुम्हें ग्लोब की परिक्रमा करवा रहीं हैं एक के बाद दूसरी योनि में भटका रहीं हैं। इनका शमन करो। परिश्रम से हासिल में संतोष करो। जैश्रीकृष्णा।
सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=TRjke-LMpoI
कर्मों से तो यह जीवन बना है। जैसे जिनके कर्म होते हैं वैसे उनको फल होतें हैं। कर्म सुधार जीवन का सुधार है। जो इच्छा पूर्वक मन और इन्द्रियों से किया जाय वह कर्म है। वह दो प्रकार है एक पाप एक पुण्य। पाप पुण्य क्या है ?
देवता और भगवान् के नाम पर जीव की हत्या भी लोग पुण्य मानते हैं। देवता और परमात्मा किसी की जान लेने पर कैसे खुश होगा ?मांसाहारियों की जीभ लपलपाती है और वे धर्म के नाम पर काट के खाना चाहते हैं धार्मिक भी बना रहना चाहते हैं और मांस भी खाना चाहते हैं। इसलिए उनकी भी एक ठकुराई है। जीव हत्या कभी धर्म नहीं होता है। पाप और पुण्य की परिभाषा सरल है। किसी को पीड़ा देना और अपनी मन इन्द्रियों को चंचल करना पाप है। दूसरों को सुख पहुंचाना ,अपनी इन्द्रियों पर संयम करना पुण्य है। ये पाप पुण्य कर्म करने के लिए प्रेरणा कौन देता है ?
लोग कहते हैं ईश्वर देता है। ईश्वर की इच्छा के बिना पत्ते भी नहीं हिलते हैं। ये भक्ति भावना की बात है बड़ी अच्छी लगती है। दुनिया में जितने अच्छे कर्म होते हैं वह तो समझ में आता है कि ईश्वर ने करवाया। और जो बुरे कर्म होते हैं वह कौन करवाता है ?वो भी वही करवाता होगा ?ये बात समझ में नहीं आती है। जो कुछ करते हैं हम करते हैं। हम जिम्मेदार हैं। कोई भगवान् या शैतान हमसे नहीं करवाता है। हम सुधार सकते हैं अपने को। अगर हम कठपुतली हैं जैसा कि लोग कहते हैं वही करता करवाता है तो इस सिद्धांत में तो हम कर्म से छुट्टी पा गए। कठपुतली तो जैसे सूत्रधार नचाता है वैसे नाचती है। तब क्या शास्त्र कठपुतली के लिए बने हैं क्योंकि आप तो बिगड़े भी नहीं है सुधरे भी नहीं है। जैसे हैं वैसे हैं। ये सब धारणाएं बिलकुल झूठी हैं। इन धारणाओं ने कर्म सिद्धांत को चौपट कर दिया है। तथ्य यह है कि हर जीव कर्म करने के लिए स्वतन्त्र है।
मन से सोचना वाणी से बोलना और फिर कर्म करना,जैसे चाहे , जो चाहे करना तीनों में आप स्वतन्त्र हैं।
आप संभाले अपने मन , वाणी और कर्म को नहीं तो दुःख पायेंगे।भगवान् कमीशन खोर नहीं है जो चोरी बे -ईमानी की बंदर बाँट लेकर खुश हो जाए ,लड्डू खाकर आपके किये की अनदेखी कर दे। चोरी आदमी के घर में करो और भगवान् के घर में क्षमा मांगो। ये क्षमा मांगने का कोई नया तरीका है ?जिसके घर में चोरी की है क्षमा उससे मांगो और उसका माल लौटा दो ये क्षमा मांगना है। भगवान् को चढ़ावा चढ़ाना वो भी चोरी के ही माल से, क्षमा मांगना नहीं है ।
कोई भगवान् आपको क्षमा करने वाला नहीं है अगर भगवान भी गलत काम करेगा तो उसका दंड उसे भोगना पड़ेगा।
राम ने स्वर्ण मृग का लोभ किया सीता हरी गईं ,सीता रोईं रावण के घर में(अशोक वाटिका ) और राम रोये जंगल में। रामावतार में राम ने बाली को छिपके मारा तो कृष्ण अवतार में ज़रा नाम के शिकारी से मारे गए।
अपनो कर्म न मेटो जाई (कबीर )
कर्म सुधारने पर ध्यान दो सच्चा ईश्वर है नियम। नियम सर्वत्र व्याप्त है नियम के अनुसार चलो। जो हम करते हैं वह हम भरते हैं हमारा पूरा जीवन कर्मों से खड़ा है . कर्म का सुधार ही जीवन का फल है। वाणी से किसी को तकलीफ न दो। मन से किसी का गलत न सोचो इन्द्रियों से गलत काम किसी के लिए न करो। इसके लिए बल मिलेगा संतों की संगत सद्शास्त्रों का अध्ययन मनन चिंतन करने से । अकेले में बैठकर विचार करना ध्यान करना। सोचना अपने को परिमार्जित करना इस रास्ते से सुधरेगा मन ।
हम इस संसार में भटक रहे हैं।कहीं से आये गए की बात छोड़ो ,वासनाओं से भटक रहे हैं हम। वर्तमान के अनुभव से हमें अपने को कसने की ज़रूरत है।हम जितनी इच्छाएं करते हैं दुनिया की उतनी तकलीफ मिलती है। इच्छाएं छोड़ देते हैं तकलीफ मिट जाती है।अपनी स्थिति में रहते मेहनत करो और उतने में जो उपलब्ध हो उसमें संतुष्ट रहो। तुलना न करो दूसरे को देखकर उससे अपनी । इसमें जलने के सिवाय और कुछ नहीं। हमारा जो है बहुत है हमारी झौंपड़ी हमारा आशियाना है राजमहल है। हमारी साइकिल हमारे लिए हेलीकॉप्टर है। प्राप्त वस्तुओं में संतुष्ट रहें।ये जितना बाज़ार है यह झूठ है यह समझें। ये बाज़ार उठ जाने वाला है। ऐसे परिवर्तनशील संसार में हम जी रहे हैं यहां पर क्या स्थिर है ?क्या अपना है सब शून्य में बदलने वाला है। मूल वस्तु शून्य नहीं होती है। कार्य -पदार्थ टूट जाता है बिखर जाता है।
संसार में भटकाव से इच्छाओं की आपूर्ति से खुद को बचाएं। बस अपना काम करें कर्तव्य निभाएं मोह न करें। हमारा लड़का क्यों नहीं मानता है हमारा कहा। निष्काम भाव से जीना साधुओं के पास है। साध जिसका मन हो वह साधू है। सुखी रहेगा वह । निष्काम मन सुखी रहेगा।
जानवरों में कोई संग्रह नहीं। मनुष्य की बुद्धि संग्रह में ,भोग में शिकारों में इतनी उलझ गई है कि हर दम दुखी रहता है।सुख से जीना हमारे अधिकार में है। अहंकार छोड़ दें पूरा सुख से जी सकते हैं। कामना छोड़ दें ,भोग की लालसा छोड़ दें। दूसरे का छिद्रान्वेषण करने के चक्कर में न पड़ें खुद का कर लें। सर झुकाकर अपने कल्याण के पथ पे चलें। फिर कोई दुःख नहीं है। ये जीवन का फल है।
आपस में संवाद जहां नहीं है वहां शांति कैसे रहेगी ?भगवान् का दुर-उपयोग बहुत हो रहा है।भगवान् के भजन का मतलब है आत्म शुध्दि करना ,हो इसके विपरीत रहा है। भ्रष्टाचार और विकृति बढ़ाने में किया जा रहा है उस ईश्वर का इस्तेमाल जो दिखलाई नहीं देता है और लोग कहते उसे प्यार करता हूँ। वही लोग कहते हैं पड़ोसी को देखकर मेरा एक पाव खून जल जाता है। जो दिखलाई देता है उस से घृणा ,यह कैसा है परमेश्वर से प्रेम ?
मन को संसार से निकालो मोह को छोड़ो तो मोक्ष मिले।कौन कहाँ से आया व्यर्थ के इस विवाद में पड़ताल में मत पड़ो। कोई कहीं से नहीं आया है। तुम्हारी वासनाएं ही तुम्हें ग्लोब की परिक्रमा करवा रहीं हैं एक के बाद दूसरी योनि में भटका रहीं हैं। इनका शमन करो। परिश्रम से हासिल में संतोष करो। जैश्रीकृष्णा।
सन्दर्भ -सामिग्री :https://www.youtube.com/watch?v=TRjke-LMpoI
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