अभिव्यक्त न होना आपको बे -चैन बनाये रहता है। कविता का उदय यही अभि-व्यक्ति है।मेरे एक दार्शनिक मित्र कह रहे थे # Metoo अभियान से किसी का भी भला नहीं हो रहा है न व्यक्ति का न परिवार समाज का न देश का न हमारी सामाजिक संस्थाओं का जो लिविंग टुगेदर और परस्त्री गमन की निरपराध वैधता के भंवर में आ चुकीं हैं। ये चंद लोगों की सोची समझी साज़िश है। हो सकता है वह ठीक कह रहे हों। अभी तो इस अभियान की बिस्मिल्ला ही है।हम निर्णय सुनाने वाले कौन होते हैं फिर अभिव्यक्त होने का अपना सुख है। भाव विरेचन है। भावशांति है। #Metoo भाव शामक का काम कर रहा है। इसके एकाधिक पहलुओं पर ये ब्लॉग ध्यान आकर्षित करता है। सांझा कर रहा हूँ मैं इस ब्लॉग को :
https://www.bbc.com/hindi/india-45900134
https://www.bbc.com/hindi/india-45900134
मैं भी, मैं भी, मैं भी.
#MeToo, #MeToo, #MeToo
पिछले साल अक्टूबर में अमरीका से शुरू हुआ #MeToo अभियान जब भारत पहुँचा तो महिलाओं ने सोशल मीडिया पर अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न के बारे में बताना शुरू किया.
तब किसी को ये अंदाज़ा नहीं था कि भारत में भी #MeToo कैंपेन इतना बड़ा हो जाएगा कि बड़े-बड़े लोगों की छवि पर प्रश्नचिह्न लग जायेंगे.
भारत में पिछले अक्टूबर से इस अक्टूबर तक में बहुत कुछ बदल गया है.
सोशल मीडिया पर तैरने वाले नन्हे से हैशटैग #MeToo को भारतीय महिलाओं ने आज अपना 'युद्धघोष' बना लिया है.
लेकिन हर मुहिम की तरह इस पर भी शक़ किया गया और अनगिनत सवाल उठाए गए.
लेकिन #MeToo से होगा क्या?
हैरत की बात नहीं है कि अभी महज एक महीने पहले ही कई लोग तंज़ कसते हुए, कुटिल मुस्कुराहट के साथ पूछते नज़र आ रहे थे- 'लेकिन #MeToo से होगा क्या?' यही सवाल दोहराते कुछ लोगों की आंखों में असली चिंता भी दिखती थी.
एक बड़े वर्ग को ये चिंता थी कि कहीं ये कुछ दिनों का इंटरनेट ट्रेंड बनकर न रह जाए.
लेकिन अब ये कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि कुटिल मुस्कानों को भी #MeToo का जवाब मिल गया है और उन्हें भी जो वाक़ई इसके हासिल को लेकर चिंतित थे.
#MeToo का हासिल क्या है, इसका जवाब कुछ इस तरह दिया जा सकता है:
मोदी सरकार में इस्तीफ़ा
यह #MeToo की ताक़त और हासिल ही है कि एमजे अकबर को विदेश राज्य मंत्री के पद से इस्तीफ़ा देना पड़ा. वो भी उस मोदी सरकार में, जिसमें ये दावा किया गया था कि 'इस सरकार में इस्तीफ़ों की परंपरा नहीं है'.
''नहीं... नहीं इसमें मंत्रियों के त्यागपत्र नहीं होते हैं भैया. यूपीए सरकार नहीं है. ये एनडीए सरकार है.''
देश के गृहमंत्री राजनाथ सिंह के बड़े आत्मविश्वास के साथ दिए गए इस बयान की हार #MeToo का हासिल है.
भारतीय राजनीति के इतिहास में ऐसा पहली बार हुआ है जब किसी सरकार में किसी मंत्री ने यौन उत्पीड़न के आरोपों की वजह से इस्तीफ़ा दिया है.
यह #MeToo का हासिल है.
- औरतें यौन शोषण पर इतना बोलने क्यों लगी हैं
- ब्लॉग: #MeToo और 'तेरा पीछा ना छोड़ूँगा सोणिए’
- #MeToo की छतरी में किसका घुसना है ख़तरनाक?
औरतों के वोटबैंक बनने की शुरुआत
भारत में औरतें वोट बैंक नहीं हैं. पहली नज़र में सुनना अजीब लग सकता है. लेकिन इसमें काफ़ी हद तक सच्चाई है.
संसद में महिलाओं से जुड़े मुद्दों पर साल में कितनी बार चर्चा होती है?
अगर होती भी है तो उस चर्चा की गंभीरता और संवेदनशीलता का स्तर कैसा होता है?
चुनावों के घोषणापत्र में औरतों के मुद्दे 'सुरक्षा' से आगे क्यों नहीं बढ़ पाते?
- #MeToo: हिंदी मीडिया में महिला का यौन उत्पीड़न नहीं होता?
- #MeToo: क्या किस करना सेक्सुअल हैरेसमेंट है?
- कठुआ-उन्नाव से लेकर #MeToo तक: कब बोलेंगे पीएम मोदी
औरतें वोटबैंक नहीं हैं इसीलिए वो कुछ भी बोल लें, कितना भी बोल लें, हुक्मरानों को कोई फ़र्क नहीं पड़ता.
राजनीतिक पार्टियों के लिए दलित समुदाय वोट बैंक है, पिछड़ी जातियाँ वोट बैंक हैं, मुसलमान वोट बैंक हैं लेकिन औरतें वोट बैंक नहीं हैं.
इसकी वजह शायद ये है कि औरतों को न तो 'लेफ़्ट' में गिना जाता है न 'राइट' में.
वो आमतौर पर न तो 'हिंदू राष्ट्र' के लिए बहुत उत्साहित दिखती हैं और न विपक्षी पार्टियों के साथ 'ऐसी सरकार हाय-हाय' के प्रयोजित नारे लगाने के लिए.
इसकी वजह ये भी हो सकती है कि औरतें जाति, धर्म, सामाजिक-आर्थिक असमानताओं और पितृसत्ता के खांचों में इतनी बुरी तरह बंटी हुईं हैं कि वो कभी ऐसे एकजुट हो ही नहीं पाईं कि शासक वर्ग में हलचल पैदा कर सकें. लेकिन अब वो हलचल नज़र आ रही है.
एमजे अकबर ने इस्तीफ़े से पहले जिस तरह ना-नुकुर और अकड़ दिखाई उससे ये तो ज़ाहिर है कि उन्होंने अपनी मर्ज़ी से इस्तीफ़ा नहीं दिया है.
निश्चित रूप से उन पर दबाव बनाया गया है. फिर चाहे वो दबाव आगामी चुनावों को देखते हुए बनाया गया हो या पार्टी की छवि बचाने के लिए.
इस्तीफ़े की वजह जो भी रही हो, इससे ये सुखद संकेत ज़रूर मिलता है कि अब शायद औरतें वोटबैंक बनने की लंबी और मुश्किल राह पर निकल पड़ी हैं.
इस्तीफ़े, कार्रवाई और भी बहुत कुछ...
इस्तीफ़ा सिर्फ़ एमजे अकबर को ही नहीं देना पड़ा है.
- हिंदुस्तान टाइम्स के राजनीतिक संपादक प्रशांत झा, टाइम्स ऑफ़ इंडिया के रेज़िडेंट एडिटर केआर श्रीनिवास और बिज़नस स्टैंडर्ड के पत्रकार मयंक जैन को भी इस्तीफ़ा देना पड़ा है.
- टाइम्स ऑफ़ इंडिया के एग्ज़ीक्यूटिव एडिटर गौतम अधिकारी को अमरीकन थिंक टैंक की टीम से बाहर होना पड़ा.
- मीडिया और मनोरंजन संस्थानों ने अपने यहां काम करने वाले पत्रकारों पर लगे यौन उत्पीड़न के आरोपों की ख़बरें छापी हैं. उन्हें सार्वजनिक तौर पर ये बताना पड़ा है कि वो इस बारे में क्या कार्रवाई कर रही हैं.
- भारत सरकार ने #MeTooIndia मुहिम में सामने आई शिकायतों की जांच के लिए रिटायर्ड जजों वाली एक समिति के गठन का ऐलान किया है.
- 'फ़ैंटम', जैसी प्रोडक्शन कंपनी टूट चुकी है. नेटफ़्लिक्स ने 'सैक्रेड गेम्स सीज़न-2' को फ़िलहाल रोक दिया है.
- नंदिता दास, ज़ोया अख़्तर, मेघना गुलज़ार, कोंकणा सेन शर्मा और गौरी शिंदे जैसी 11 नामी महिला फ़िल्मकारों ने उन कलाकारों के साथ काम न करने का ऐलान किया है जिन पर यौन उप्तीड़न के आरोप लगे हैं.
- एआईबी (AIB) ने अपने वो सारे एपिसोड इंटरनेट से हटा लिए हैं जिनमें वो कॉमेडियन शामिल था जिस पर यौन उत्पीड़न के आरोप लगे हैं. इसके दो बड़े कॉमेडियन छुट्टी पर चले गए हैं और हॉटस्टार ने 'ऑन एयर विद एआईबी सीज़न-3' की रिलीज़ रदद् कर दी है.
ये सब #MeToo का हासिल है.
माफ़ी, शर्मिंदगी और कबूलनामा
#MeToo की एक बड़ी क़ामयाबी ये है कि महिलाओं ने जिन पर आरोप लगाए, उनमें से कई लोगों ने उनके आरोपों को स्वीकार किया.
या यूं कहें कि उन्हें आरोपों को स्वीकार करना पड़ा. फिर चाहे वो अनुराग कश्यप का विकास बहल को दोषी मानना हो या चेतन भगत और रजत कपूर का सार्वजनिक तौर पर माफ़ी मांगना.
#MeToo का हासिल ये है कि लोग सालों पुरानी घटनाओं को याद कर उन महिलाओं से माफ़ी मांग रहे हैं जब महिलाओं ने उन पर भरोसा करके उन्हें अपने उत्पीड़न की कहानी सुनाई थे लेकिन वो उन पर भरोसा नहीं कर पाए थे.
वो सुननेवाले आज महिलाओं से उन पर भरोसा न करने और उनकी कहानियों पर सवाल उठाने के लिए माफ़ी मांग रहे हैं.
- उत्पीड़न की पुरानी शिकायत की क़ानूनी वैधता कितनी?
- #MeToo: 'बॉलीवुड के ‘संस्कारी’ अभिनेता ने किया मेरा बलात्कार'
- #MeToo विकास बहल पर यौन हमले का आरोप, अनुराग ने मानी ग़लती
क्या ये भी यौन उत्पीड़न है?
इन दो सवालों के जवाब इन दिनों सबसे ज़्यादा ढूंढे जा रहे हैं.
यौन उत्पीड़न क्या है?
और
सहमति क्या है?
ये वो सवाल हैं जो बेहद महत्वपूर्ण होने के बावजूद एक कोने में धकेल दिए गए थे लेकिन आज वो कोने से निकलकर सबके सामने आ गए हैं.
'यौन उत्पीड़न' और 'सहमति' की परिभाषाएं और दायरे टटोले जा रहे हैं.
पुरुष आज शायद पहली बार पूछ रहे हैं कि क्या ये उत्पीड़न है? क्या ये भी यौन उत्पीड़न है?
पुरुषों का ऐसे सवाल पूछना इसलिए अहम है क्योंकि इससे पहले उन्होंने शायद ये पूछने की ज़हमत ही नहीं उठाई.
क्या मैंने उस लड़के का उत्पीड़न किया?
"यार, मैंने उसे एकसाथ 60 मेसेज भेजे थे. वो तंग हो गया होगा. उसने मना किया था फिर भी मै उसे मेसेज कर रही थी. क्या मैंने उसे हैरेस किया?"
"पता नहीं, शायद हां..."
ये बातचीत दो लड़कियों के बीच हो रही है, क़रीबी सहेलियों के बीच.
लड़कियाँ भी अब लड़कों की 'हां या ना' के बारे में इतना गंभीरता से सोच रही हैं.
वो सोच रही हैं कि कहीं उन्होंने जाने-अनजाने में किसी लड़के का उत्पीड़न तो नहीं किया. ये #MeToo का हासिल है.
युद्ध के मोर्चे पर औरतें, सिर्फ़ औरतें...
ये शायद पहली बार है जब औरतों की लड़ाई की कमान पुरुषों के नहीं बल्कि ख़ुद उनके हाथों में हैं.
वो निडर होकर ख़ुद अपनी कहानियां दुनिया के सामने रख रही हैं. पुरुषों का इसमें कोई दखल नहीं हैं.
वो पुरुषों को नहीं बताने दे रही हैं उन्हें कितना बोलना है और कितना तोलना है.
महिलाएं पुरुषों को अपनी जीत का श्रेय नहीं लेने दे रही हैं, ये #MeToo का हासिल है.
वो पुरुषों से नहीं पूछ रही हैं कि आज उनका ये सब कहने में उनकी 'भलाई' है या नहीं.
वो पुरुषों को 'तुम्हारे ही भले के लिए बोल रहा हूं' कहने का मौका नहीं दे रही हैं.
ये #MeToo का हासिल है.
माएं बेटियों से पूछ रही हैं, #MeToo क्या है?
बीबीसी इंडिया बोल कार्यक्रम में प्रज्ञा श्रीवास्तव ने बताया कि उनकी मां उनसे #MeToo के बारे में पूछ रही थीं क्योंकि वो एक शिक्षिका रही हैं और अपने आस-पास महसूस किए यौन उत्पीड़नों के बारे में लिखना चाहती हैं.
उत्तर प्रदेश के किसी कोने में बैठी एक मां का अपनी युवा बेटी से #MeToo के बारे में पूछना #MeToo का हासिल है.
अब औरतें दिल में दर्द लिए नहीं मरेंगी
मेरे सहयोगी विकास त्रिवेदी ने अपने एक ब्लॉग में लिखा था कि न जाने कितनी औरतें होंगी जो अपने साथ हुए यौन उत्पीड़न की कहानियां अपने दिल में ही लिए मर गई होंगी.
लेकिन अब भविष्य में शायद औरतें दिल में यौन उत्पीड़न का दर्द लिए नहीं मरेंगी, इस उम्मीद का जगना ही #MeToo का हासिल है.
Comments
Post a Comment